क्यों नहीं करना चाहिए राहु काल में शुभ कार्य ? Rahu Kaal / राहु काल को हिन्दू धर्म में शुभ कार्य के लिए अच्छा नहीं माना गया है इसलिए कोई भी शुभ कार्य करने से पहले राहु काल पर अवश्य ही विचार कर लेना चाहिए। प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म में किसी प्रकार के शुभ कार्य करने से पहले शुभ समय का विचार किया जाता रहा है क्योकि यह मान्यता रहा है की शुभ समय में किया गया कार्य हमेशा शुभ फल प्रदान करता है तथा भूलवश भी यदि अशुभ समय में कोई कार्य किया जाता है तो उसके परिणाम विपरीत होता है। ज्योतिष में राहु एक छाया तथा अशुभ ग्रह के रूप में प्रतिष्ठित है। यह दैत्यों के सेनानायक के रूप में भी जाना जाता है।
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Rahu Kaal / राहु काल का क्या है सच ?
समुद्र मंथन से जब अमृतकलश निकला तब देवो और दानवो के मध्य पहले अमृतपान कौन करेगा को लेकर विवाद होने लगा देवताओ को चिंता हुई की कही दानव अमृतपान कर अमर न हो जाए यदि ऐसा हो जाएगा तो सृष्टि की व्यवस्था चरमरा जाएगी तब विष्णु भगवान विश्वमोहिनी रूप धारणकर दानवों को इस पर राजी कर लिया की दोनों बराबर-बराबर अमृतपान करेंगे। दानवो ने इसे स्वीकार कर लिया और दोनों पक्ष पंक्तिबद्ध होकर बैठ गए परन्तु दानवो का सेनापति राहु बहुत ही चालाक था वह वेश बदलकर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा परन्तु जैसे ही राहु ने अमृतपान किया, वैसे ही सूर्य और चंद्र ने राहु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता दिए तत्क्षण विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से राहु का गला काट दिया। राहु के सर कटने के काल को ही “राहुकाल” कहा गया, जो अशुभ काल के रूप में माना जाता है। राहु के सिर कटने की घटना संध्याकाल की है, जिसे पूरे दिन के घंटा और मिनट का आठवां भाग माना गया। वास्तव में राहु के लिए तो वह अशुभ ही समय था अतः यही कारण है जिसप्रकार राहु अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका उसी प्रकार इस काल में किया गया कोई भी कार्य पूर्ण नहीं हो पाता है अतः हमें इस काल में कोई भी कार्य करने से अवश्य ही बचना चाहिए।
ज्योतिष के अनुसार Rahu Kaal / राहु काल जानने की विधि
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक दिन का एक भाग राहु काल के रूप में माना गया है। इसकी अवधि लगभग 1 घंटा 30 मिनट अर्थात 90 मिनट की होती है। Rahu Kaal / राहु काल के निर्धारण का मुख्य आधार सूर्योदय (Sunrise) और सूर्यास्त (Sunset) ही होता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के काल को आठ भागो में बाँट कर राहुकाल का निर्धारण किया जाता है। वस्तुतः दैत्यराज राहु के सिर कटने की घटना सांध्यकाल की है, जिसे पूरे दिन के घंटा, मिनट का आठवां भाग माना गया। यथा किसी भी स्थान के सूर्योदय के समय से सप्ताह के प्रथम दिन यथा सोमवार को दिनमान के 8वें भाग में से यह दिन के दूसरे भाग में होता है इसी प्रकार मंगलवार को यह दिन के सप्तम भाग में, बुधवार को यह पांचवे भाग में, वृहस्पतिवार को षष्ठ भाग में, शुक्रवार को चौथे भाग में शनिवार को तृतीय भाग में तथा रविवार को आठवें भाग पर राहु ग्रह का प्रभाव होता है और यह राहु काल के रूप में प्रतिष्ठित है।
प्रत्येक दिन के अनुसार राहु काल
कैसे करें ? Rahu Kaal /राहु काल की सही गणना ?
जिस स्थान का Rahu Kaal / राहु काल निकालना हो उस स्थान का सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय को पंचांग से देखकर आठ भागों में बांट कर समय निकाल लेना चाहिए ऐसा करने पर सही समय का पता चल जाता है।
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